Gulaal (2009) भारत में बनी एक राजनीतिक ड्रामा फ़िल्म है।
इस फ़िल्म को भारत के मशहूर फ़िल्म निर्देशक अनुराग कश्यप जी ने स्वयं निर्देशित किया हैं।
अनुराग कश्यप भारत के उन चुनिंदा फिल्मकारों में से एक है
जो सही में कुछ नया कर दिखाने का जज़्बा रखते हैं।
उन्होंने अपने करियर में ऐसी बहुत सी फिल्में बनाई हैं जिनको बना पाना सब के बस की बात नहीं थी।
Black Friday, DevD, Gangs of Wasseypur जैसी बेहतरीन फिल्में उनके द्वारा स्वयं निर्देशित हैं।
भारतीय फ़िल्म उद्योग में अक्सर यह देखा गया है की औसत दर्जे की फिल्मों को दर्शक ज्यादा नसीब होते है
और अच्छी व बेहतरीन फिल्मों को सिनेमाघर तो दूर, फ़िल्म फेस्टिवल तक भी जाना नसीब नही हो पाता।
आज भी लोग फ़िल्म के नाम पर मसाला और मनोरंजन की मांग करते हैं।
साल 2009,
भारतीय फ़िल्म जगत का वो दौर था जब फ़िल्म उद्योग में फिल्मों का कमर्शियलाइजेशन अपने शुरुआती दिनों में था।
कॉरपोरेट मीडिया हाउस बॉलीवुड में अनेकों मुख्य धारा के प्रसिद्ध कलाकारों के साथ मिलकर बड़ी बजट की फिल्में बनाने लगी थी।
इस कमर्शियलाइजेशन के दौर में अनुराग कश्यप जी को भी अपनी फ़िल्म बनाने के लिए एक बड़ा प्रोडक्शन हाउस नसीब हुआ।
Zee Studio द्वारा स्थापित Zee Limelight Pictures ने इस फ़िल्म का निर्माण किया।
उस समय गुलाल फ़िल्म का बजट 10 करोड़ रुपए था।
फ़िल्म में बॉलीवुड कलाकार के. के मेनन, पियूष मिश्रा, आदित्य श्रीवास्तव, अभिमन्यु सिंह और माही गिल जैसे दिग्गज कलाकार शामिल हैं।
फ़िल्म की कहानी
Gulal (2009) फ़िल्म की कहानी उत्तर भारत में बसे राजस्थान राज्य के एक काल्पनिक शहर राजपुर में स्थित हैं।
फ़िल्म की कहानी भारत के नक्शे में राजस्थान के अंदर उभरते हुए शहर राजपुर पर केंद्रित होते हुए शुरू होती हैं।
BG में किसी विशेष इंसान की आवाज़ सुनाई देती है जो की किसी बड़े आंदोलन को अपनी बोली की मशाल से भड़काने में लगा हुआ हैं।
फ़िल्म की कहानी दिलीप नाम के एक राजपूत लड़के की ज़िंदगी के इर्द गिर्द घूमती है।
दिलीप कानून की पढ़ाई करने के लिए बीकानेर से राजपुर आया हैं।
वह अपना बसेरा अंग्रेजों के ज़माने में बने एक पुराने बंद हो चुके PUB में खोजता हैं।
जब कोई कुछ नहीं कर पाता तो लॉ करने चला आता हैं। -रंसा
वहा उसकी मुलाकात रणंजय “रंसा” नाम के एक शाही रजवाड़े राजपूत लड़के से होती हैं।
रंसा दबंग मिजाज़ का व्यक्ति होता है और दिलीप अपने काम से मतलब रखने वाला सरल स्वभाव व्यक्ति होता हैं।
उसका दबंग व्यक्तित्व दिलीप को प्रभावित करता हैं।
दिलीप का बड़ा भाई उसे रंसा के साथ घुलने मिलने से बचने के लिए समझाता है।
साथ ही वह उसे हॉस्टल में रूम देखते रहने के लिए भी समझाता हैं।
दिलीप रूम का पता करने के लिए अपने कॉलेज के हॉस्टल में पहुंचता हैं।
वहा उसको कॉलेज के कुछ बदमाश लड़के मिलकर रैगिंग कर देते हैं।
जड़वाल नाम का लड़का उस गैंग का लीडर होता है
और वह उसको बिना कपड़ो के बिना लाइट के कमरे में बंद कर देते हैं।
उस कमरे में कोई पहले से मौजूद होता हैं।
अनुजा जोकि उसी कॉलेज की नई युवा लैक्चरर है उसे भी जडवाल गैंग ने रैगिंग करके उसे कमरे में बंद करके रखा होता हैं।
दिलीप यह बात अपने भाई को बताता है लेकिन उसका भाई उसे इस बात को भूल जाने के लिए कहता हैं।
जब यह बात रंसा को पता लगती है तो वो आग बबूला होकर जड़वाल को सबक सिखाने के लिए दिलीप को साथ लेकर चलता हैं।
“लेने गए थे बना देने पड़ गए” – रंसा
दिलीप और रंसा जब वहा पहुंचते है तो पता चलता है जड़वाल के पास देसी कट्टा है और वो उनका पहले से इंतजार कर रहा हैं।
इस बार जड़वाल गैंग रंसा और दिलीप दोनों की रैगिंग कर देते है और उनकी बाइक और साइकिल की टायर का हवा भी निकाल देते हैं।
रंसा अपनी बेज़त्ती का बदला लेने के लिए डुकी बना की मदद लेता हैं।
डुकी बना राजपुर शहर का नामी आदमी होता हैं।
वह इस मामले को रफा दफा करने में उनकी मदद करता हैं।
डुकी बना अपनी एक राजनीतिक पार्टी बनाना चाहता हैं।
जिसके लिए वो रंसा को कॉलेज के जनरल सेक्रेटरी के पद के लिए चुनाव में खड़ा होने के लिए बोलता हैं।
रंसा डुकी बना की बात मान लेता है और चुनाव में खड़ा हो जाता हैं।
जनरल सेक्रेटरी चुनाव में उसका प्रतिद्वंदी और कोई नहीं बल्कि खुद उसकी सौतेली बहन किरण हैं।
इस चुनाव का क्या परिणाम निकलता है,
रंसा के चुनाव जीतने से डुकी बना को क्या फायदा होगा यह जानने के लिए आपको फ़िल्म देखना होगा।
फ़िल्म के कलाकार
के.के. मेनन – डूकी बना
राज सिंह चौधरी – दिलीप कुमार सिंह
अभिमन्यु सिंह – रणंजय रंसा सिंह
कारण सिंह – आदित्य श्रीवास्तव
दीपक डोबरियाल – भाटी
पियूष मिश्रा – पृथ्वी बना
आयशा मोहन – किरण
माही गिल – माधुरी
पंकज झा – जड़वाल
फ़िल्म के संगीत
Gulaal (2009) फ़िल्म का संगीत पियूष मिश्रा जी द्वारा बनाया गया हैं।
वह इस फ़िल्म में डुकी बना के बड़े भाई पृथ्वी बना का भी किरदार निभा रहे हैं।
और इसमें कोई संदेह नहीं की उन्होंने दोनों ही विभाग में बड़ी शिद्दत से काम किया हैं।
फ़िल्म के हर एक गाने दिल को छू जाने वाले है तथा फ़िल्म के हर एक दृश्यों के भावों को स्पष्ट करने में एक दम कारगर साबित होते हैं।
फ़िल्म का मशहूर गाना “आरंभ हैं प्रचंड” आज भी युवाओं को जोश देने के लिए रामबाण से कम नहीं।
बहुत से युवा आज भी इस जानकारी से अनजान है की यह मशहूर गाना Gulaal (2009) फ़िल्म का हैं।
फ़िल्म से जुड़ी खास बातें
अनुराग कश्यप साहब द्वारा निर्देशित Gulaal (2009) की कहानी के पीछे की philosophy को अगर ध्यान से समझे तो
हमे यह पता चलेगा कि राजस्थान के शाही हिंदू रजवाड़े खानदान के राजपूत “डुकी बना” (के .के मेनन)
भारत सरकार के खिलाफ जंग करने के लिए एक अंडरग्राउंड सेना को तैयार कर रहा है।
इस जंग की मदद से वह भविष्य में राजपुर शहर को भारत सरकार से अलग कर के एक आजाद देश बनाएगा।
यह सब करने के पीछे उनका एक ही मकसद है राजपुर को उसकी खोई हुई विरासत वापस दिलाना।
वह इस खोई हुई विरासत को राजपुर में सरकारी कानून को खत्म करके
वापस राजशाही कानून लाकर पूरा करना चाहता है।
उसकी नज़र में राजपुर सिर्फ और सिर्फ राजपूतों के लिए है
और उनके सिवा वहा कोई और दूसरा काबिज़ नही होगा और ना ही बसेगा।
जब हम इस तरह की काल्पनिक मनिस्कता को आसपास की वास्तविक दुनिया से जोड़ कर देखते है
तो हमे ये पता चलता है की इस तरह की जहरीली आज़ादी का सपना देखने वाले कई और भारत के राज्य थे जिसमे से सबसे मुख्य शहर है कश्मीर।
कश्मीर में एक समय ऐसा भी था जब भारत देश से अलग होकर एक नए देश बनाने का बहुत से अलगाववादी नेताओं का सपना था।
अनुराग कश्यप साहब ने बड़ी ही चालाकी और बुद्धिमता से इतिहास और धार्मिक दृष्टिकोण का इस्तेमाल करते हुए गुलाल फिल्म को लिखा व निर्देशित किया है।
और यह कहना बिलकुल गलत नहीं होगा की फिल्म गुलाल एक मास्टरपीस फिल्म है।
ऐसी फिल्म लिख पाना व बना पाना, वो भी उस ज़माने में जब भारतीय युवाओं की पुरानी और नई दोनो ही पीढ़ी की एक बहुत बड़ी संख्या का इंटरनेट से कोई लेना देना नहीं था।
निष्कर्ष
कुल मिलाकर Gulaal (2009) यह दर्शाती हैं की सत्ता को पाने के लिए सत्ता में पूर्ण विराजमान लोग कैसे अपने मतलब को पूरा करने के लिए युवाओं का इस्तेमाल करते हैं।
फिल्म में कोई लोकप्रिय चेहरा ना होने की वजह से भी फ़िल्म बॉक्स ऑफिस पर असफल रहीं।
इंटरनेट की दूरी और युवा लोगो की फिल्मों के प्रति बचकानी स्वाद ने इस फिल्म को 2009 के ज़माने में एक असफल फ़िल्म बना दिया।
हालाकिं आज के समय में लोगों ने इस फ़िल्म की महत्वपूर्णता को समझा और यही कारण है की यह फ़िल्म अब एक कल्ट क्लासिक मास्टरपीस साबित हो चुकी हैं।
2009 में जहां 3 इडियट्स जैसी फिल्में लोकप्रियता हासिल कर रही थी, वही गुलाल फिल्म को अंडररेटेड रहना पड़ा या ‘डुकी बना’ के अंदाज़ में कहे तो हां “हमें झुकना पड़ा” ।
हमें खुशी है की आपको हमारे द्वारा लिखी गई Gulaal (2009) फ़िल्म का review पसंद आया।
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